Thursday, June 12, 2014

ज़िन्दगी

बोझिल आँखों में तैरता एक जिस्म
कुछ अधनंगा सा
उमस भरी ज़िन्दगी जीने को शापित
वो, और उसका नन्हा सा
मासूम फिर भी शापित
ऐसी ज़िन्दगी जीने को।

आख़िर उनके साथ ही ऐसा क्यूँ होता है?
शायद इसलिए की वो बनाया गया था इसी खातिर
की लोग लिख सके कुछ ऐसा
जिसमे अधनंगी मासूमियत मिले
या फिर
इसलिए की
ये हमारे दिवालों पे टंगे रहे
एक साधन बन कर - मनोरंजन का।

कटेया
३:४० PM
१३/४/१९९१-१९९३


No comments:

Post a Comment