वो
बैठी हुई चौखट पर
इंतज़ार में
किसी के।
खोया रहा किसी में
मैं भी
जब उठ खड़ी हुई
वो
शरमाकर।
और फिर
उस अतीत के बाद
मैं
चलता हुआ पगडंडियों पर
जब उसके समीप पहुंचा
देखा मैंने उसको
आँगन के किनारे
कनखियों से देखते हुए।
मैं वर्तमान से डरता नहीं!
उस स्याह रात में
मेरे सिर को अपनी गोद में लेकर
बक-बक कर रही थी वो
और मैं
उन गुलाबी होंठो की कसमकस महसूस रहा था।
आज फिर
वो मेरे पास आई थी
मगर सिमटकर अपने आप में।
मैं
उसको महसूसता रहा
ऊपर से निचे तक
मगर वो
सिमटी रही अपने आप में।
मैंने
छूने की कोशिश की
उसके अधरों को
मगर चली गयी वो फिर कहीं
उसी गाँव में, उसी घर में।
मै क्या समझूँ ?
घूमता रहा
उन पगडंडियों पर
बेचैन होकर
उन कनखियों के लिए।
-सोनी
वाराणसी (१२/१/२०००)
बैठी हुई चौखट पर
इंतज़ार में
किसी के।
खोया रहा किसी में
मैं भी
जब उठ खड़ी हुई
वो
शरमाकर।
और फिर
उस अतीत के बाद
मैं
चलता हुआ पगडंडियों पर
जब उसके समीप पहुंचा
देखा मैंने उसको
आँगन के किनारे
कनखियों से देखते हुए।
मैं वर्तमान से डरता नहीं!
उस स्याह रात में
मेरे सिर को अपनी गोद में लेकर
बक-बक कर रही थी वो
और मैं
उन गुलाबी होंठो की कसमकस महसूस रहा था।
आज फिर
वो मेरे पास आई थी
मगर सिमटकर अपने आप में।
मैं
उसको महसूसता रहा
ऊपर से निचे तक
मगर वो
सिमटी रही अपने आप में।
मैंने
छूने की कोशिश की
उसके अधरों को
मगर चली गयी वो फिर कहीं
उसी गाँव में, उसी घर में।
मै क्या समझूँ ?
घूमता रहा
उन पगडंडियों पर
बेचैन होकर
उन कनखियों के लिए।
-सोनी
वाराणसी (१२/१/२०००)
Behatareen
ReplyDeletedhanyawad :)
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