Tuesday, June 10, 2014

वो

वो
बैठी हुई चौखट पर
इंतज़ार में
किसी के।
खोया रहा किसी में
मैं भी
जब उठ खड़ी हुई
वो
शरमाकर।

और फिर
उस अतीत के बाद
मैं
चलता हुआ पगडंडियों पर
जब उसके समीप पहुंचा
देखा मैंने उसको
आँगन के किनारे
कनखियों से देखते हुए।

मैं वर्तमान से डरता नहीं!
उस स्याह रात में
मेरे सिर को अपनी गोद में लेकर
बक-बक कर रही थी वो
और मैं
उन गुलाबी होंठो की कसमकस महसूस रहा था।

आज फिर
वो मेरे पास आई थी
मगर सिमटकर अपने आप में।
मैं
उसको महसूसता रहा
ऊपर से निचे तक
मगर वो
सिमटी रही अपने आप में।

मैंने
छूने की कोशिश की
उसके अधरों को
मगर चली गयी वो फिर कहीं
उसी गाँव में, उसी घर में।

मै क्या समझूँ ?
घूमता रहा
उन पगडंडियों पर
बेचैन होकर
उन कनखियों के लिए।

-सोनी
वाराणसी (१२/१/२०००)






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