एक जिस्म,
मैं,
और कुछ ख्वाहिशें
- हम तीनों चल रहे थे
साथ-साथ एक ही ओर, एक ही धुरी में।
ख्वाहिशें सबसे आगे;
इस आशा में की - मेरे साथ चलने वाली वो कुछ ख़्वाहिशें - पा जाएं अपनी मंज़िल कुछ पहले।
मैं चल रहा था सबसे पीछे।
हम चले जा रहे थे - दूर बहुत दूर
पर वो ख्वाहिशें
कमज़ोर हो चुकी थी समय के साथ-साथ
या फिर थक गई थी - उन रास्तों से।
अचानक उसको सामने दिखा उसका मंज़िल
लेकिन तब भी एक फ़ासला था
फ़ासला - उस ख्वाहिश और उसकी मंज़िल के बीच
वो फ़ासला बढ़ता गया समय के साथ-साथ
जैसे वो फ़ासला नहीं एक दरिया हो।
फ़ासला कभी कम नहीं हुआ
उस ख्वाहिश को कभी नहीं मिल पाई उसकी मंज़िल
शायद
इसलिए की एक फ़ासला पहले से ही उस ख्वाहिश और मेरे बीच था
- एक जिस्म का फ़ासला।
वे ख्वहिशे मेरा साथ पाना चाहती थी
उस फासले को तय करने के लिए।
लेकिन
इस यात्रा में
अब है
सिर्फ वो जिस्म,
और उसके ठीक पीछे
टुटा हुआ मैं।
देवघर
१४-६-(१९९९-२०००)
मैं,
और कुछ ख्वाहिशें
- हम तीनों चल रहे थे
साथ-साथ एक ही ओर, एक ही धुरी में।
ख्वाहिशें सबसे आगे;
इस आशा में की - मेरे साथ चलने वाली वो कुछ ख़्वाहिशें - पा जाएं अपनी मंज़िल कुछ पहले।
मैं चल रहा था सबसे पीछे।
हम चले जा रहे थे - दूर बहुत दूर
पर वो ख्वाहिशें
कमज़ोर हो चुकी थी समय के साथ-साथ
या फिर थक गई थी - उन रास्तों से।
अचानक उसको सामने दिखा उसका मंज़िल
लेकिन तब भी एक फ़ासला था
फ़ासला - उस ख्वाहिश और उसकी मंज़िल के बीच
वो फ़ासला बढ़ता गया समय के साथ-साथ
जैसे वो फ़ासला नहीं एक दरिया हो।
फ़ासला कभी कम नहीं हुआ
उस ख्वाहिश को कभी नहीं मिल पाई उसकी मंज़िल
शायद
इसलिए की एक फ़ासला पहले से ही उस ख्वाहिश और मेरे बीच था
- एक जिस्म का फ़ासला।
वे ख्वहिशे मेरा साथ पाना चाहती थी
उस फासले को तय करने के लिए।
लेकिन
इस यात्रा में
अब है
सिर्फ वो जिस्म,
और उसके ठीक पीछे
टुटा हुआ मैं।
देवघर
१४-६-(१९९९-२०००)
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