Saturday, March 10, 2018

बचपन क्या है?

दोपहर की झपकी ले रहे नाना के फतुही से
बड़ी चालाकी से
कुछ सिक्के चुराना
और बस्ती के दूसरी ओर हलवाई की दुकान में
समोसे और जलेबियाँ खाना |
नानी की सिफारिश बढ़ई को लगा के नयी गिल्लियां बनवाना
और मस्जिद के सामने वाले मैदान में हर शाम
गिल्ली-डंडा खेलना |

जेठ की गर्मी में
दोस्तों के साथ पढ़ने के बहाने
चुपके से घर से बहार निकलना
और जामुन के उस विशाल पेड़ से मोटे बड़े काले गदरायें जामुन तोडना |
आषाढ़ की आंधी के बाद की ठंढी हवा में
खिड़कियां खोल के
छत पे बेख़ौफ़ सोना
और फिर सुबह में पके पिले गिरे आमों को चुनना |

देर रात तक लैंप के निचे पढ़ते रहने का नाटक करना
और पिता के डर से हर सवेरे झुंझला कर जागना |
अपनी पुरानी साइकिल को तेजी से दोनों हाथ छोड़ के चलाना
और गांव की उस गली में जाने अनजाने बार बार जाना |

हर शाम दोस्तों के साथ
उस बांध के किनारे वाले टीले पे
गुजरते क्षण का बड़े ठहराव से मजे लेना
और बड़ी बारीकी से गांव में चल रहे
हर फ़साने का विश्लेषण करना |

भूलते-भागते 
बचपन के वो दिन |

-संदीप सोनी
पोर्टलैंड
१० मार्च २०१८
 @SandeepSoniPhD

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