ये ज़िन्दगी की जो किताब है
कई और पन्नें जुड़ेंगे उसमें
कुछ गद्द
कुछ पद्द
उसमे होगा थोड़ा रस
थोड़ा स्वांग
थोड़ा प्रेम
मगर होगी वो लबालब ख़ुशी से
‒ ऐसा हमने सोचा |
जब कभी ये छोटी परी आएगी आँगन में
रौशन होगा हर एक कमरा
हर एक किनारा
हर उस चौखट के परदे
खेल रहे होंगे अठखेलियाँ |
रोशनदान से आने वाली हरेक किरणें
ढूंढेगी इसको
हर पहर |
आँगन के बीच खिली तुलसी की हरेक पत्ती
होगी स्मित
हर एक गेंदा रह होगा मुस्करा |
घर होगा एक बागीचा
बाग़ में हर एक वो भौरा
हर एक वो फूल
हर एक वो पौधा
होगा मगन
जब कभी ये परी होगी खिलखिला |
पर उसने सोचा ‒
ज़िन्दगी नयी होगी जब मिलेंगे हम
न होंगी उसमे पुरानी दीवारें
न पूराना छत
न पुराना कमरा
न पुराना घर |
ज़िन्दगी की किताब होगी नयी
बेहतरीन और
बड़ी खूसबसुरत
हर पन्ने होंगे नए और करारे |
वो जो है किताब पुरानी
है बहुत पुरानी
जमी है धुल उस पर
पन्ने हो गए बेजान और पीले |
घर होगा एक बागीचा
पर हर फूल होंगे नए
हर पौधा होगा नया
हर खिड़की होगी नयी
और खिड़कियों के हर एक परदे होंगे नए
एकदम नए|
सूरज की किरणे अब भी आती
रोशनदान से
मगर सहमकर |
फूल, पौधा और पत्ती
अब भी होते मुस्करा
पर सकुचा कर |
हमने सोचा
नहीं बदलेगा मंज़र
पर
बदल रही थी पूरी फ़िज़ा |
- संदीप सोनी
पोर्टलैंड
२४ अप्रैल २०१८
@SandeepSoniPhD
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