Friday, January 26, 2018

भूल गया

पिता के कंधे पे बैठ
जब मैं उछलता और
चिल्लाता –
जय कन्हैया लाल की
जवाब आता –
हाथी घोडा पालकी
सारी दुनिया अपनी लगती
सारे लोग अपने लगते
हम उस दुनिया के शहंशाह होते
सारे लोग हमारी खिदमत में रहते |
आज सात-समंदर पार
फिर से
ढूंढता हूँ वो कंधा |
मैं अपनों का कंधा बनते बनते
अपना कंधा भूल गया |

वो घर
दो कमरे का
किराए का  
किसी बंगले से कम न लगता |
आज ये मेरा महल
किसी आशियाने को वीरान करने की सजा लगता है |
महल तो बना दिया
मगर
कमरा बनाना भूल गया |

आवारा जब घूमता
मै
बेपरवाह
गलियों में - दोस्तों के साथ
ट्रैन के पटरियों पे - चप्पल में
बिना डरे
बिना सोचे
बिना समझे
पता था मुझे - परवाह मेरी सबको है |
अब
बरसों बाद
जब मै घूमता हूँ
गाड़ियों में
चौड़ी सड़कों पे
बड़े शहरों में
कीमती जूतों में
जिम्मेदार और शांत
फिर भी चिंतित
अपनों की परवाह से |
सोंचता हूँ
मुझे - परवाह तो सभी की है
बस
अपनों की परवाह करना भूल गया |
 
- संदीप सोनी
पोर्टलैंड
१५ दिसंबर २०१७

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