Monday, January 8, 2018

पूस की सुबह में


घर तरबतर 
अगरबत्ती की महक से
दूर से आते मठिये की भजन से
उस पूस की सुबह में |

माँ है रसोईघर में
पिता नहा रहे आँगन में
दादी करती पूजा मंदिर में
और दादा डूबे –
कल की अख़बार में
अख़बार को दोबारा पढ़ते
छत के ऊपर धुप में |
सारे कुटुंब लगे
अपने काम में |
बस्ती के बीच से
घूमता हुआ
पहुंचता स्कूल मैं |

ये भी है पूस की सुबह
पानी से भीगती
न भोर की किरण  से
न मठिये की भजन से
सरोबार
स्वार्थ से
उपेक्षा से |

अब भी देखता मैं
तीन पीढ़ियां
पर
दूसरों के ‒
साथ बाजार में
डिनर टेबल पे उस रेस्त्रां में
घर के पास वाले पार्क में
और दोस्तों के फेसबुक पोस्ट में |

गाड़ियों से भरी सड़क पे
बैठ कर बड़ी गाड़ी में
जाता मैं काम पे
अस्थिरचित
पूस की सुबह में |

- संदीप सोनी
पोर्टलैंड
३ जनवरी २०१८

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