घर
तरबतर
अगरबत्ती
की महक से
दूर
से आते मठिये
की भजन से
उस
पूस की सुबह में |
माँ
है रसोईघर में
पिता
नहा रहे आँगन में
दादी
करती पूजा मंदिर
में
और
दादा डूबे –
कल
की अख़बार में
अख़बार
को दोबारा पढ़ते
छत
के ऊपर धुप में
|
सारे
कुटुंब लगे
अपने
काम में |
बस्ती
के बीच से
घूमता
हुआ
पहुंचता
स्कूल मैं |
ये
भी है पूस की सुबह
पानी
से भीगती
न
भोर की किरण से
न
मठिये की भजन से
सरोबार
स्वार्थ
से
उपेक्षा
से |
अब
भी देखता मैं
तीन
पीढ़ियां
पर
दूसरों
के ‒
साथ
बाजार में
डिनर
टेबल पे उस रेस्त्रां में
घर
के पास वाले पार्क में
और
दोस्तों के फेसबुक पोस्ट में |
गाड़ियों
से भरी सड़क पे
बैठ
कर बड़ी गाड़ी में
जाता
मैं काम पे
अस्थिरचित
पूस
की सुबह में |
-
संदीप सोनी
पोर्टलैंड
३
जनवरी २०१८
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