पिता
के कंधे पे बैठ
जब
मैं उछलता और
चिल्लाता
–
जय कन्हैया लाल की
जवाब
आता –
हाथी घोडा पालकी
सारी
दुनिया अपनी लगती
सारे
लोग अपने लगते
हम
उस दुनिया के शहंशाह होते
सारे
लोग हमारी खिदमत में रहते |
आज
सात-समंदर पार
फिर
से
ढूंढता
हूँ वो कंधा |
मैं
अपनों का कंधा बनते बनते
अपना
कंधा भूल गया |
वो
घर
दो
कमरे का
किराए
का
किसी
बंगले से कम न लगता |
आज
ये मेरा महल
किसी
आशियाने को वीरान करने की सजा लगता है |
महल
तो बना दिया
मगर
कमरा
बनाना भूल गया |
आवारा
जब घूमता
मै
बेपरवाह
गलियों
में - दोस्तों के साथ
ट्रैन
के पटरियों पे - चप्पल में
बिना
डरे
बिना
सोचे
बिना
समझे
पता
था मुझे - परवाह
मेरी सबको है |
अब
बरसों
बाद
जब
मै घूमता हूँ
गाड़ियों
में
चौड़ी
सड़कों पे
बड़े
शहरों में
कीमती
जूतों में
जिम्मेदार
और शांत
फिर
भी चिंतित
अपनों
की परवाह से |
सोंचता
हूँ
मुझे
- परवाह तो सभी की है
बस
अपनों
की परवाह करना भूल गया |
- संदीप
सोनी
पोर्टलैंड
१५
दिसंबर २०१७