एक ज़ख़्म -
छोटा सा मगर गहरा
लिए मैं घूम रहा हूँ
अपने दोस्तों के बीच,
ताकी उनमे से कोई एक
उसकी गहराई को भाँप सके।
उस ज़ख़्म को महसूस सके।
उसे लगे की मैं उसके लिए बना हूँ
और वो मेरे लिए बना है।
मग़र
डरता हूँ
इस बात से की,
कहीं वो जान न जाए
की ये ज़ख़्म हक़ीक़त में ज़ख़्म नहीं हैं।
ये एक सज़ा है,
अपने एक अज़ीज को धोखा देने की,
उसके मोहब्बत को बदनाम करने की।
लेकिन
अगर मैं इतना ही बदसूरत हूँ तो,
इंतज़ार करूँगा
ज़ख़्म के नासूर बनने का,
और
ऐसा दर्द पाने का -
जिससे से तड़पता रहूँ
हमेशा।
वाराणसी
११:३५ pm
१४-८-१९९९
छोटा सा मगर गहरा
लिए मैं घूम रहा हूँ
अपने दोस्तों के बीच,
ताकी उनमे से कोई एक
उसकी गहराई को भाँप सके।
उस ज़ख़्म को महसूस सके।
उसे लगे की मैं उसके लिए बना हूँ
और वो मेरे लिए बना है।
मग़र
डरता हूँ
इस बात से की,
कहीं वो जान न जाए
की ये ज़ख़्म हक़ीक़त में ज़ख़्म नहीं हैं।
ये एक सज़ा है,
अपने एक अज़ीज को धोखा देने की,
उसके मोहब्बत को बदनाम करने की।
लेकिन
अगर मैं इतना ही बदसूरत हूँ तो,
इंतज़ार करूँगा
ज़ख़्म के नासूर बनने का,
और
ऐसा दर्द पाने का -
जिससे से तड़पता रहूँ
हमेशा।
वाराणसी
११:३५ pm
१४-८-१९९९
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